आज एक न्यूज चैनल बता रहा है कि किस प्रकार अमेरिका में भारतीय आयुर्वेद का डंका बज रहा है। किस प्रकार से अमेरिका में भारतीय जड़ी बूटियों पर रिसर्च हो रही है और वहां पर इन रिसर्च पर कितना पैसा खर्च किया जा रहा है। इन भारतीय जड़ी बूटियों से किस प्रकार असाध्य रोगों का इलाज किया जाए, इस प्रकार की खोज की जा रही है। इस खबर में ये भी बताया गया कि अमेरिकन भी अब हल्दी वाला दूध पीने लगे है। यदि आपने अभी तक ये सुधीर चौधरी की ये खबर नहीं देखी है तो मै एक लिंक दे रहा हूं जहां से आप फेसबुक पेज से ये खबर देख सकते हैं और अपने आप पर, अपने देश पर, और इन सबसे ज्यादा अपने उस आयुर्वेदिक ज्ञान पर गर्व कर सकते हैं जो विश्व में उस वक्त किसी के पास नहीं था। 
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भारत का हजारों वर्षों से आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में अटूट विश्वास रहा है। आज के आधुनिक ज्ञान की बहुत सी खोज तो हमारे उसी वर्षों पुरानी पद्धति से चुराई हुई है जिसको आज भारत में ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमने अपने इस अमूल्य ज्ञान को पुनर्जीवित करने का कभी ठोस प्रयास नहीं किया। हमने अपने ज्ञान विज्ञान को छोड़कर पश्चिमी देशों की शिक्षा को अपने भविष्य का आधार बनाया। हालांकि कुछ लोगों ने अपनी इस अमूल्य धरोहर को बचाने का असफल प्रयास किया, असफल इसलिए क्योंकि इस काम के लिए हमारे प्रशासन और सरकार कभी सकिर्य नहीं हुए ना ही इसको कोई महत्व दिया। आयुर्वेद के साथ हमेशा दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया। और कमोबेश आज भी यही स्थिति है। आज भी हम विदेशों में आयुर्वेद पर हो रहे रिसर्च की बात तो करते है लेकिन भारत में इस पर हो रहे भेदभाव की बात नहीं करते। हमारे मीडिया हाउस कभी इस बात को नहीं बताते की किस प्रकार हमारी जड़ी बूटियों को विदेशियों द्वारा पेटेंट करवाया जा रहा है। आज कुछ लोग आयुर्वेद के प्रचार में लगे हुए हैं लेकिन सरकार के पूर्ण सहयोग के बिना उचित परिणाम नहीं मिलेंगे। 
आज हम स्वदेशी, आत्मनिर्भर, मेक इन इंडिया की भले ही बात करें लेकिन धरातल पर कुछ भी होता नजर नहीं आ रहा है। पूरी दुनियां महामारी से जूझ रही है और इस महामारी का अभी तक कोई इलाज न मिलना बड़ा ही चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऐसे समय में यदि सरकार चाहती तो आयुर्वेद पर भरोसा कर सकती थी और इस महामारी की प्रकृति को देखते हुए आयुर्वेद इस बीमारी को नियंत्रण में कर सकता था। लेकिन पता नहीं सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरियां हैं जो ऐसे समय पर भी आयुर्वेदिक दवाओं के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दे रही है। हमारी सरकार यदि सचमुच आत्मनिर्भर भारत बनाना चाहती है तो इसके लिए बहुत बड़े स्तर पर परिवर्तन करना होगा। हमे शुरू से अपनी शिक्षा का ढांचा ऐसा करना होगा कि हम ज्यादा से ज्यादा अपने ही बनाए उत्पादों का प्रयोग करे उन्हीं उत्पादों पर खोज करे और उन्हीं पर अपनी निर्भरता को कायम रखे। तभी जाकर हम आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा कर पाएंगे।

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