Friday, July 24, 2020

आया राम गया राम : भारतीय राजनीती के रोचक किस्से

आया राम गया राम : भारतीय राजनीती के रोचक किस्से 
भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। और एक लोकतान्त्रिक देश में राजनीति का ऊंट कब कौन सी करवट लेगा ये कोई नहीं जानता। यहाँ तक की जनता जिस नेता और जिस पार्टी को चुनकर भेजते है वो कब किसकी सरकार गिरा दे और किसकी सरकार बनवा दे, ये कहना बहुत मुश्किल है। और इसी सत्ता के खेल में जनता की भावनाओं को रोंधकर स्वार्थ की कुर्सी पर कब्ज़ा किया जाता है। भारतीय राजनीति में नेताओं का दल बदलना बड़ी आम सी बात हो गई है।  इसी कारण नेताओं को दल बदलू भी कहा जाता है। किसी भी पार्टी में कई कई साल तक रहने के बावजूद बहुत से नेता पार्टी बदल लेते है और कारण बताते है पार्टी में उचित सम्मान न मिलना। और ये सब किसी नेता, विधायक या सांसद के लिए कोई नहीं बात नहीं है। भारत में दल बदलने की इस परम्परा को 'आया राम गया राम' के नाम से खूब जाना जाता है। 'आया राम गया राम' वाक्य किस प्रकार प्रचलित हुआ, यह एक बड़ा रोचक किस्सा है। 
बात 1967 की है जब हरियाणा विधान सभा के लिए पहली बार चुनाव हुए थे। उस समय हरियाणा विधान सभा में 81 सीटें थी। 1967 के चुनावों में कुल 16 निर्दलीय विधायक चुनकर आये थे। गया लाल भी उनमें से एक थे। गया लाल हरियाणा के पलवल ज़िले के हसनपुर विधान सभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। चुनाव नतीजे आने के बाद तेजी से बदले घटनाक्रम में गया लाल कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन उसी दिन वो जनता पार्टी में आ गए। लेकिन फिर से गया लाल का मन बदला और 9 घंटे बाद फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। इस प्रकार  गया लाल ने एक ही दिन में 3 बार पार्टी बदली। बाद में पार्टी नेता राव बीरेंदर सिंह गया लाल को लेकर प्रेस वार्ता करने के लिए चंडीगढ़ ले गए और पत्रकारों को बताया कि गया राम अब आया राम है। राव बीरेंदर सिंह के इस ब्यान ने बाद में 'आया राम गया राम' कहावत का रूप ले लिया और देश में जब भी ऐसी दल बदलने की कोई घटना होती है तो 'आया राम गया राम' कहावत का खूब इस्तेमाल होता है। तो गया लाल ही वो विधायक थे जिन्होंने 'आया राम गया राम' वाक्य को अमर कर दिया। हरियाणा में आया राम गया राम की रवायत ऐसी रही कि बाद में 1968 में फिर से विधान सभा चुनाव करवाने पड़े। 
बाद में भी हरियाणा में कई बार ऐसा ही हुआ और सरकारे दल बदलू विधायकों ने बनाई और गिराई। आखिर में दल बदल से राहत पाने के लिए सविंधान संसोधन करके नया कानून बनाना पड़ा। दल बदल तो अब भी होता है लेकिन अब नए कानून से दल बदलना इतना आसान नहीं रह गया है। 

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