Saturday, September 5, 2020

शिक्षक दिवस

 


शिक्षक दिवस 

दुनियां के बहुत से देशों में शिक्षक को विशेष महत्व दिया जाता है और इसी सम्मान हेतु भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में यह दिन भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। वो भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे जो इन पदों पर आसीन होने से पहले एक शिक्षक थे। 

शिक्षक या गुरु का नाता हर एक के जीवन में अहम भूमिका निभाता है। प्राचीन काल से ही भारत में गुरु शिष्यों की अनेक कथाएं सुनी जाती है। बल्कि ये कहना अधिक उचित होगा कि प्राचीन काल में जिस गुरु शिष्य की परम्परा का प्रचलन था आज वो देखने को नहीं मिलती। माता पिता के बाद गुरु की जीवन में अहम भूमिका होती है। वो गुरु ही होता है जो एक बालक को अपनी शिक्षा और अनुभवों से अपने से भी महान बना देता है। चाणक्य ने एक बालक को भारत का महान सम्राट चन्द्रगुप्त बना दिया। 

आज के दौर में ऐसी गुरु शिष्य की परम्परा को वक्त ने काफी हद तक बदल दिया है। शिक्षा देने और लेने वाले दोनों ही उस युग से आज तक पूरी तरह से बदल चुके हैं। इतना ही नहीं शिक्षा देने के स्थान और तरीका भी बदल चुका है। लेकिन देखा जाय तो अंतिम उद्देश्य अभी भी वही है। केवल उस उदेश्य को प्राप्त करने के साधन बदले है। और निश्चित रूप से हमारा उद्देश्य नहीं बदलना चाहिए। शिक्षक का उद्देश्य एक विद्यार्थी को केवल लिखने या पढ़ने का ज्ञान करवाना ही नहीं है बल्कि उसको एक ऐसा इंसान बनाना है जो इस दुनियां को और अधिक समृद्ध बना सके। जो अपने शिक्षक के दिए हुए ज्ञान से दुनियां से अज्ञान रूपी अंधकार को मिटा कर एक नए उजाले की ओर ले जाए।

ज्ञान, जानकारी और समृद्धि के वास्तविक धारक शिक्षक ही होते हैं जिसका इस्तेमाल कर वह हमारे जीवन के लिए हमें विकसित और तैयार करते हैं। हमारे माता पिता की तरह शिक्षक का भी हमारे जीवन में उतना ही महत्व होता है। हम सभी को शिक्षक का एक आज्ञाकारी विद्यार्थी दिल से अभिनन्दन करने की जरूरत है।

Tuesday, August 25, 2020

हरियाणा सरकार का नया जुमला

 हरियाणा सरकार का नया जुमला


हरियाणा सरकार ने प्रदेश के युवाओं को ग्रुप सी व डी के लिए होने वाले टैस्ट की coaching देने का फैसला किया है। इससे पहले भी सरकार युवाओं को HTET के लिए कोचिंग दिलवा चुकी हैं। लेकिन सरकार के ऐसे फैसले से कितने युवाओं को फायदा मिला है ये तो सब जानते हैं। दूसरे सरकार ने अभी तक यह भी नहीं बताया कि इससे पहले कोचिंग लेने वाले कितने युवाओं को सरकार के इस फैसले से लाभ मिला है। ऐसे फैसले से युवाओं को लाभ मिले या ना मिले लेकिन सरकार जिस इंस्टीट्यूट से कोचिंग देने का करार करती है उसे तो फायदा मिल ही जाता है। 

यूं अगर देखा जाए तो पूरे देश में ही बेरोजगारी आज चरम पर पहुंच चुकी है। पिछले 5 साल में बेरोजगारी में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। CORONA संकट ने हालात और भी बदतर कर दिए हैं। सरकार सरकारी नौकरियों में लगातार कटौती करती जा रही है। सरकार मुनाफे वाले PSU को भी निजीकरण की ओर धकेल रही है। मतलब साफ है सरकार धीरे धीरे हर काम को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर चुकी है। प्राइवेट सेक्टर में भी रोजगार लगातार घट रहे हैं। AUTOMATION के कारण बहुत सी नौकरियां खत्म हो रही है। 

शिक्षा, स्वास्थ्य मूलभूत सुविधाओं वाले विभागों में भी सरकार कर्मचारियों को ठेके पर रख रही है या बहुत से कार्यों को प्राइवेट कंपनियों से करवा रही है। हरियाणा में HTET पास युवाओं कि संख्या 90 हजार के करीब है और बहुत से HTET पास युवाओं के CERTIFICATE की VALIDITY खत्म हो चुकी है। ये युवा कोई दूसरा काम भी करने की स्थिति में भी नहीं रहे हैं क्योंकि इनको फिर से HTET की परीक्षा की तैयारी करनी है। 

बेरोजगारी की हालत ये है की ग्रुप डी के लिए MSC, MPHIL और पीएचडी तक युवा इसके लिए अप्लाई करते हैं। हर Dept. में हजारों की संख्या में पद खाली पड़े हुए हैं लेकिन सरकार कोई भर्ती नहीं कर रही है। अब ऐसे में ये कोचिंग कितनी काम आएगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा।

Saturday, August 22, 2020

Delhi Police में Constable भर्ती

 SSC 5846 Constable Male and Female (Executive) in Delhi Police


Staff Selection commission 

(SSC) has announced a notification for the recruitment of Constable(Executive) Male and Female in Delhi Police. Those candidates who are interested can read instructions and full details for this vacancy to fill online Application.

Total Vacancy: 5846 

Post : Constable (Executive) Male and Female

Apply from: 01-08-2020

Last Date:07-09-2020

Exam Date : 27-11-2020 to 14-12-2020

Apply Online from this Site: 

https://ssc.nic.in

Vacancy Details :



ITI पास ECIL में Apprentice करें

 ITI पास ECIL में Apprentice करें 


Total Vacancy -285

संक्षिप्त विवरण - ITI TRADE APPRECIATE के लिए ECIL में CONTRACT BASE पर भर्ती। 

Apply Online from : 24-08-2020

Last Date : 19-09-2020

Date of Document verification: 24 to 30-09-2020

Required ITI PASS NCVT CERTIFICATE

Interested candidates can read full instructions before applying online Application


http://ecil.co.in

इस साइट से आप ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

Vacency Details इस प्रकार से है:



Friday, August 21, 2020

PM किसान सम्मान निधि योजना

 PM किसान सम्मान निधि योजना

24 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए पीएम किसान सम्मान निधि योजना को शुरू किया था। इस योजना का मकसद से किसानों को हर साल सरकार की ओर से 6000/- रू की सहायता राशि दी जाएगी। यह सहायता राशि 5 एकड़ तक के किसानों के लिए थी। इस राशि को तीन किस्तों में दिया जा रहा है। यानी 2000/- की तीन किस्तों दी जाएगी। यह राशि किसानों के बैंक खातों में सीधे ट्रांसफर की जाती है। अभी तक सरकार इस योजना के तहत किसानों को 6 किस्ते दे चुकी है। 

इस योजना का मकसद किसानों की जमीन और उनकी फसल की गुणवत्ता को बढ़ाना है। सरकार के द्वारा दी गई राशि से किसान अपने खेतों में इस राशि से सुधार करे और उसकी फसल का उत्पादन और गुणवत्ता भी बढ़ाए। इससे किसानों को उनकी फसल के अच्छे दाम मिलेंगे और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। लेकिन अभी तक बहुत से किसान इस योजना से वंचित है। लगभग 9 करोड़ किसान ही इस योजना का लाभ ले पाए हैं। यदि आपने भी इस योजना रजिस्ट्रेशन करवा दिया है तो आप साइट पर जाकर लिस्ट में अपना नाम चेक कर सकते हैं। 

इसके लिए आपको pmkisan.gov.in जाकर लाभार्थियों की सूची को चैक करना होगा। यदि आपके खाते में पैसे आए हैं तो उस लिस्ट में आपका मिलेगा। और यदि आपका रजिस्ट्रेशन मोबाइल, आधार या बैंक अकाउंट की डिटेल की वजह से अधूरा पड़ा हुआ है तो आप इस काम को ऑनलाइन इसी साइट पर जाकर पूरा कर सकते हैं। यदि आपने अभी तक इस सूची में रजिस्ट्रेशन ही नहीं करवाया है तो आप इस लिंक पर जाकर खुद अपना रजिस्ट्रेशन केवल सकते है।

इसके लिए आपको इस वेब साइट पर जाकर फार्मर कॉर्नर टेब पर जाना होगा। इस टेब में आपको कई ऑप्शंस दिए गए हैं। यही से आप ऑनलाइन सभी सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे। यदि फिर भी आपकी समस्या का समाधान नहीं हुआ तो आप अपने जिले के नोडल अधिकारी से मिल कर अपनी समस्या का समाधान करा सकते है।

Saturday, August 8, 2020

LUVAS Admission Session 2020-21, HISAR

Admission Session 2020-21

 

लाला लाजपत राय यूनिवर्सिटी ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंस हिसार में सत्र 2020-21 के एडमिशन के लिए 11-08-2020 से प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो रही है। 

 Application Fees

  1. GC/ ESM/ FF/ PWD and Management Quota – Rs.2800
  2. SC/BC Category of Haryana State – Rs.700
  3. NRI and Foreign Nationals – Rs.4000
1st Step – Visit the official website of Lala Lajpat Rai University of Veterinary and Animal Science (luvas.edu.in)
2nd Step – Click on the button stating ‘Apply Online’
3rd Step – Fill the details in the LUVAS application form
4th Step – Upload photograph and signature in the prescribed format
5th Step – Pay the application fee based on the category
6th Step – Take a print out of the filled-in application form

List of Documents

  1. Class 10th certificate mentioning the Date of Birth and father’s/Mother’s name
  2. Class 12th certificates issued by the relevant board
  3. Admit card for class 12th examination
  4. NEET UG admit card 2020
  5. Resident of Haryana Certificate (If required)
  6. Character Certificate issued by last attended institute
  7. Relevant certificates to support any claim regarding any reservation
  8. Aadhar Card
  9. Kashmiri Migrant Certificate (if applicable)
  10. Two copies of coloured photograph same as uploaded in the admission form
official website:

LUVAS B.V.Sc. & AH Admission 2020

LUVAS offers full-time undergraduate courses in B.V.Sc. and AH for a duration of five years.

Mode of the CoursesFull-Time
Duration5 years
Mode of ApplicationOnline 
Basic Eligibility Criteria10 +2 with 50% marks in PCB
Basic Selection CriteriaMerit in NEET-UG

LUVAS B.Tech. Admission 2020

LUVAS also offers a B.Tech. in Dairy Technology for four years,

Mode of the CoursesFull-Time
Duration4 years
Mode of ApplicationOnline 
Basic Eligibility Criteria10 +2 with 50% marks in PCM
Basic Selection CriteriaEntrance-based 

LUVAS Diploma Admission 2020

The institution offers two-years long diploma programmes in two specialisations of veterinary sciences. 

Courses OfferedDiploma Courses
Mode of the CoursesFull-Time
Duration2 Years
Number Of Specializations
Mode of ApplicationOnline
Basic Eligibility CriteriaA minimum of 60% marks
Basic Selection CriteriaMerit in NEET UG

Following are the specializations in which the LUVAS offers Diploma Courses

  • Veterinary and Livestock Development Diploma 
  • Diploma in Veterinary Laboratory Technology

LUVAS Diploma Eligibility Criteria 

  • For the VLDD course, minimum aggregate marks will be 60%. 
  • The SC category candidates are allowed a relaxation up to 5%.
  • For the DVLT course, candidates must have secured at least 45% in 10+2 with medical subjects. 
  • SC category candidates will be allowed a relaxation up to 5%. 
  • The age requirements are a minimum of 17 years of age, and a maximum of 22 years of age (30 years for SC / ST /OBC Candidates). For in-service candidates, the upper age limit is 50 years.

Sunday, August 2, 2020

भाई बहन के प्यार का त्यौहार रक्षा बंधन



भाई बहन के प्यार का त्यौहार रक्षा बंधन 
आप सब दोस्तों को सहपरिवार 
रक्षा बंधन की शुभकामनाएं

Friday, July 24, 2020

आया राम गया राम : भारतीय राजनीती के रोचक किस्से

आया राम गया राम : भारतीय राजनीती के रोचक किस्से 
भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। और एक लोकतान्त्रिक देश में राजनीति का ऊंट कब कौन सी करवट लेगा ये कोई नहीं जानता। यहाँ तक की जनता जिस नेता और जिस पार्टी को चुनकर भेजते है वो कब किसकी सरकार गिरा दे और किसकी सरकार बनवा दे, ये कहना बहुत मुश्किल है। और इसी सत्ता के खेल में जनता की भावनाओं को रोंधकर स्वार्थ की कुर्सी पर कब्ज़ा किया जाता है। भारतीय राजनीति में नेताओं का दल बदलना बड़ी आम सी बात हो गई है।  इसी कारण नेताओं को दल बदलू भी कहा जाता है। किसी भी पार्टी में कई कई साल तक रहने के बावजूद बहुत से नेता पार्टी बदल लेते है और कारण बताते है पार्टी में उचित सम्मान न मिलना। और ये सब किसी नेता, विधायक या सांसद के लिए कोई नहीं बात नहीं है। भारत में दल बदलने की इस परम्परा को 'आया राम गया राम' के नाम से खूब जाना जाता है। 'आया राम गया राम' वाक्य किस प्रकार प्रचलित हुआ, यह एक बड़ा रोचक किस्सा है। 
बात 1967 की है जब हरियाणा विधान सभा के लिए पहली बार चुनाव हुए थे। उस समय हरियाणा विधान सभा में 81 सीटें थी। 1967 के चुनावों में कुल 16 निर्दलीय विधायक चुनकर आये थे। गया लाल भी उनमें से एक थे। गया लाल हरियाणा के पलवल ज़िले के हसनपुर विधान सभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। चुनाव नतीजे आने के बाद तेजी से बदले घटनाक्रम में गया लाल कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन उसी दिन वो जनता पार्टी में आ गए। लेकिन फिर से गया लाल का मन बदला और 9 घंटे बाद फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। इस प्रकार  गया लाल ने एक ही दिन में 3 बार पार्टी बदली। बाद में पार्टी नेता राव बीरेंदर सिंह गया लाल को लेकर प्रेस वार्ता करने के लिए चंडीगढ़ ले गए और पत्रकारों को बताया कि गया राम अब आया राम है। राव बीरेंदर सिंह के इस ब्यान ने बाद में 'आया राम गया राम' कहावत का रूप ले लिया और देश में जब भी ऐसी दल बदलने की कोई घटना होती है तो 'आया राम गया राम' कहावत का खूब इस्तेमाल होता है। तो गया लाल ही वो विधायक थे जिन्होंने 'आया राम गया राम' वाक्य को अमर कर दिया। हरियाणा में आया राम गया राम की रवायत ऐसी रही कि बाद में 1968 में फिर से विधान सभा चुनाव करवाने पड़े। 
बाद में भी हरियाणा में कई बार ऐसा ही हुआ और सरकारे दल बदलू विधायकों ने बनाई और गिराई। आखिर में दल बदल से राहत पाने के लिए सविंधान संसोधन करके नया कानून बनाना पड़ा। दल बदल तो अब भी होता है लेकिन अब नए कानून से दल बदलना इतना आसान नहीं रह गया है। 

Saturday, July 18, 2020

क्या मार्कसीट ही सफलता का पैमाना है ?

दोस्तों आज कल 10वीं व 12वीं के परीक्षा परिणाम घोषित हो रहे हैं और बहुत से विद्यार्थियों को अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं आने के कारण निराशा और चिंता ने  घेर लिया है। ऐसे में हर रोज ख़बरें आती है कि परीक्षा परिणाम अच्छा नहीं आने के कारण कई विद्यार्थी गलत कदम उठा रहे हैं और अवसाद ग्रस्त हो रहे हैं। उनके परिजन भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। दरअसल ये भावना हमारे पूरे समाज में समा चुकी है कि बिना अच्छे मार्क्स के हम कभी भी कामयाब नहीं हो सकते। हम लोगों ने जीवन की सफलता को स्कूल की पढ़ाई से जोड़ दिया है। और पढ़ाई भी वो जो हमारे देश और हमारी संस्कृति से मेल ही नहीं खाती है।
 यदि हम किसी दूसरे देश में जाकर वहां के नागरिकों से ये कहे कि आप लोग हिंदी मीडियम से अपनी पढ़ाई करें तो क्या वो लोग उसको अच्छी तरह से कर पाएंगें? 
दूसरी बात क्या हमारे देश में बच्चों की पढ़ाई के साथ अभिभावकों की काउसिलिंग भी होनी चाहिए ? क्योंकि बच्चों पर पढ़ाई का सबसे ज्यादा दबाव मां बाप द्वारा ही दिया जाता है । आज तक ज्यादातर अभिभावकों को यही लगता है कि 10वीं व 12वीं में ज्यादा से ज्यादा मार्क्स हैं सफलता की सीढ़ी है। 
तीसरी बात हमारी शिक्षा पद्धति शिक्षित तो कर रही है लेकिन वो रोजगार देने में असमर्थ है। एक अध्ययन के अनुसार भारत के 80% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट किसी नौकरी पाने के काबिल नहीं है। इसी तरह से अन्य विषयों का भी कुछ कुछ यही हाल है। 
दरअसल ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को बचपन से ही यही सिखाते हैं कि ज्यादा से ज्यादा मार्क्स ले के आओ। जितने ज्यादा मार्क्स उतनी बड़ी नौकरी। तो बच्चों पर मार्क्स लेने का दबाव बढ़ता रहता है और बहुत से बच्चे इस दबाव से अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं। और जब उनके रिजल्ट अपेक्षा के अनुरूप नहीं आते तो वे गलत कदम उठा लेते हैं। 
तारे जमीन पर, थ्री ईडियट्स ऐसी ही और भी कई फिल्में है जिनके द्वारा ये दिखाने की कोशिश की गई कि हमें सफलता के पीछे नहीं भागना है, हमें काबिलियत के पीछे भागना है। यदि हम काबिल होंगे तो सफलता झख मार के भी मिलेगी। कई बार क्या होता है हम अपने बच्चों से वो करवाने की कोशिश करते हैं जिसमें उनका कोई interest नहीं होता है। तो बच्चा उस फील्ड में हमेशा पीछे रह जाता है और वो सोचता उसी की मेहनत में कमी है, अभिभावक भी बच्चे की ही कमी निकलते हैं। एक अकेला बच्चा अपने सपने को पूरा नहीं करता है बल्कि अपने मां बाप के सपने को पूरा करने के लिए मेहनत करता है। 
हम में से कितने ऐसे मां बाप है जो अपने बच्चे से पूछते हैं कि उसे क्या पसंद है, वह क्या करना चाहता है, क्या बनना चाहता है। बस हम उसे बस्ता देकर कह देते हैं तुझे फलां के बच्चे से ज्यादा मार्क्स लेने है । एक बच्चे पर मां बाप, पड़ोसी, रिश्तेदार, स्कूल, अपनी क्लास के बच्चे का दबाव होता है। अब इतने प्रेसर में कोई नॉर्मल कैसे रह सकता है। भारत की जनसंख्या 135 करोड़ है लेकिन आज भी हम खेलों में विश्व स्तर पर गिनती में बहुत पीछे खड़े नजर आते हैं। हमारे बच्चे 90% से ऊपर अंक लेते हैं लेकिन उनमें से कितने बच्चे ऐसे है जो किसी फील्ड में विश्व स्तर पर कोई सफलता हासिल कर पाया हो। आज 10वीं व 12वीं के रिजल्ट आने पर सोशल मीडिया पर अपने बच्चों के रिजल्ट बताने वालों की बाड़ आई हुई है और ये सब वो लोग है जिनके बच्चों ने 90% से ज्यादा मार्क्स लिए है। 90% से कम मार्क्स लेने वालों ने अपने बच्चों का रिजल्ट सोशल मीडिया पर शेयर नहीं किया। मतलब बाकी बच्चों का रिजल्ट कोई मायने नहीं रखता । लेकिन क्या आप लोगों ने कभी नोट किया कि इनमें से कितने बच्चे किसी खास फील्ड में कामयाब हुए है। या जो बच्चे कामयाब है उनके 10वीं, 12वीं में कितने मार्क्स आए थे। 
इस साल सीबीएसई बोर्ड की 12 वीं परीक्षा में 12 लाख बच्चे शामिल हो रहे है। हर राज्य का अपना स्टेट बोर्ड अलग है। उप्र स्टेट बोर्ड में इस वर्ष 23 लाख छात्रों ने परीक्षा दी थी। इस प्रकार से देखा जाये तो हर वर्ष करोड़ों बच्चे 12 वीं की परीक्षा पास करते है और लाखों 90% से ऊपर मार्क्स लेते है। लेकिन इनमें से कितने बच्चे ऐसे है जो असल जिंदगी में कामयाब हो पाते है। या जिनको अपनी पढ़ाई का पूरा क्रेडिट मिल पाता है। लाखों बच्चे तो ऐसे होते है जिनके अवसर ही नहीं मिलता अपनी क़ाबलियत दिखाने का। उनको मज़बूरी में कही ढेला लगाकर अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का बंदोबस्त करना होता है। बहुत से बच्चों को आरक्षण का जिन आगे नहीं बढ़ने देता। वो जहां भी जाते है आरक्षण का जिन उनको आगे खड़ा मिलता है। हमारे देश में बच्चों को पढ़ने के अवसर नहीं मिल पाते है, टेक्निकल एजुकेशन की तो छोड़िये आर्ट्स पढ़ने के लिए भी कॉलेज उपलब्ध नहीं हो पा रहे है। खासकर दूर दराज और गावों में रहने वाली लड़कियों के लिए हालात इससे भी बुरे है। 
अच्छे मार्क्स लेना अच्छी बात है लेकिन अपने उन बच्चों को भी मत भूलों जिनके कम मार्क्स आए हैं। अच्छे मार्क्स कभी भी इस बात की गारंटी नहीं होती कि वो कामयाब होगा। जहां तक संभव हो सके बच्चों को वो सिखाए जो उनका पैशन बन सके। इसका एक फायदा ये होगा कि बच्चा उस काम को कम से कम सुविधाओं में भी करेगा। क्योंकि वो उसका पैशन है। इसलिए अपने बच्चों को अच्छी तालीम के साथ साथ अच्छे संस्कार, जीवन जीने का कला और अच्छा हुनर भी सिखाएं जिसमें उनकी रुचि हो फिर आपका हर बच्चा कामयाब होगा। और भारत आत्मनिर्भर भी होगा।
Friends, today the 10th and 12th exam results are being announced and many students are surrounded by disappointment and anxiety due to not getting the results as expected. In such a situation, everyday news comes that many students are taking wrong steps and suffering from depression due to poor results. Their families are also going through the same circumstances. Actually, this feeling has seeped into our whole society that without good marks we can never succeed. We have associated the success of life with school education. And also the study which does not match our country and our culture.
 If we go to another country and tell the citizens of that country that you should do your studies with Hindi medium, will they be able to do it well?
Secondly, should there be counseling of parents along with education of children in our country? Because most of the pressure on children is given by the parents. Till date most of the parents feel that there are more and more marks in 10th and 12th is the ladder to success.
Thirdly, our education system is educating, but it is unable to provide employment. According to a study, 80% of India's engineering graduates are not eligible to get a job. Similarly, other subjects also have the same condition.
In fact, most parents teach their children from childhood that they should bring maximum marks. The more marks, the bigger the job. So the pressure on children to take marks keeps increasing and many children suffer depression due to this pressure. And when their results do not come as expected, they take the wrong step.
On Taare Zameen, Three Idiots are many other films that have tried to show that we do not want to run after success, we have to run after ability. If we are able, then we will get success too What happens many times, we try to get our children to do that in which they have no interest. So the child is always left behind in that field and he thinks that he is lacking in hard work, parents are also lacking in the child. A single child does not fulfill his dream but works hard to fulfill the dream of his parents.
How many of us have such parents who ask their child what he likes, what he wants to do, what he wants to be. We just give him a bag and tell you to take more marks than a child of such and such. A child is under pressure from parents, neighbors, relatives, schools, children of his class. Now how can anyone be normal in such a pressure? The population of India is 135 crores but even today, we are standing far behind in the world level in sports. Our children score above 90%, but how many of them have achieved success in any field globally. Today, on the 10th and 12th results, there is a fence on social media to tell the results of their children and these are all those people whose children have scored more than 90% marks. Those taking less than 90% of the marks did not share the results of their children on social media. Meaning the result of the rest of the children does not matter. But have you ever noted how many of these children have succeeded in a particular field. Or how many marks came in the 10th, 12th of the child who is successful.
This year, 12 lakh children are appearing in the CBSE Board 12th examination. Each state has its own state board. This year 23 lakh students had appeared in the UP State Board. In this way, every year, crores of children pass the 12th examination and lakhs take marks above 90%. But how many of these children are able to succeed in real life. Or who gets full credit for their studies. There are millions of children who do not get the opportunity to show their ability. They have to be forced to make a lump and to arrange for the bread of June 2 for their family. Many children are not allowed to proceed with reservations. Wherever they go, they get reservation in front of them. In our country, children are not able to get opportunities to study, except technical education, colleges are also not available for studying arts. The situation is even worse, especially for girls living in far flung and villages.

It is good to have good marks, but do not forget even those children who have fewer marks. Good marks are never a guarantee that they will succeed. As far as possible teach children what they can become a passion. One of the advantages of this is that the child will do that work in minimum facilities as well. Because that is his passion. Therefore, along with good training, teach your children good rites, art of living and good skills in which they are interested and then every child of yours will succeed. And India will also be self-sufficient.

Friday, July 10, 2020

क्या भारतीय शिक्षा पद्धति बेरोज़गारी बढ़ा रही है ?

क्या भारतीय शिक्षा पद्धति बेरोज़गारी बढ़ा रही है ?
भारत में बेरोज़गारी हर सरकार के लिए एक मुख्य समस्या रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार इस समस्या का हल नहीं करना चाहती होगी। किसी भी सरकार की कामयाबी में रोजगार देना एक अहम् मुद्दा होता है। फिर चाहे वो रोजगार सरकारी क्षेत्र में हो या निजी क्षेत्र में हो। सभी पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र में बेरोजगारी की समस्या को हल करने का वादा किया जाता है। लेकिन कोई भी पार्टी सत्ता में आने के बाद इस वादे पर खरी नहीं उतरती। बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। 
देखिये मै भी कोई स्पैशल एनालिस्ट तो नहीं हूँ बस अपने विचार आप के साथ शेयर कर रहा हूँ। आप मेरे विचार से सहमत भी हो सकते है नहीं भी। क्योंकि किसी समस्या को देखने का सबका अपना अपना नजरिया होता है। हमारा देश कृषि प्रधान देश है। यहां के 60% लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर खेती से जुड़े हुए है और यही उनका प्राथमिक व्यवसाय भी है। अंग्रेजों के भारत में आने से पहले यहां की शिक्षा पद्धति ऐसी थी की हमे शिक्षा के साथ उन कार्यों को भी सिखाया जाता था जो हमारी रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े हुए थे। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थी को आत्मनिर्भर होना सिखाया जाता था ताकि वो अपने और अपने परिवार का भरण पोषण कर सके। उसके सामने रोजी रोटी का संकट ना आए ऐसी शिक्षा विद्यार्थियों को दी जाती थी। 
लेकिन अंग्रेजी शासन में शिक्षा की व्यवस्था केवल कर्मचारी पैदा करने वाली हो गई। अंग्रेजो ने हमे शिक्षित तो किया लेकिन केवल संवाद करने के लिए और नौकरी करने के लिए। उनकी व्यापार की नीति और केवल लाभ कमाने की नीति थी । जिससे हमारा वो कौशल नष्ट हो गया जो हमें आत्मनिर्भर बनाता था। हम खुद उन पर निर्भर हो गए। खेती में भी हम केवल वही फसलें पैदा कर सकते थे जिनकी अंग्रेजों को जरूरत होती थी। इस प्रकार से अंग्रेजो ने हमें पूरी तरह से अपनी पहचान और अपनी संस्कृति से दूर कर दिया। जिससे हम रोजगार देने के स्थान पर रोजगार लेने वालों की लाइन में लग गए। 
आजादी के 70 साल बाद भी हम उसी शिक्षा पद्धति पर चल रहे हैं। अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा हम पर ऐसी थोपी आज भी हम उसे छोड़ नहीं पाए हैं। अंग्रेजी भाषा न जानने वालों को हम अनपढ़ की श्रेणी में गिनते हैं। कितने बच्चे इस अंग्रेजी भाषा की वजह से अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर चले जाते हैं। कितने बच्चे को ये ही पता नहीं होता कि मैथ और साइंस के फार्मूले कहां पर काम आंएगे और उनको याद न कर पाने की वजह से उनकी पढ़ाई बीच में छूट गई। हर मां बाप अपने बच्चों को बचपन से ही यही सिखाते हैं ' बेटा 90-95% मार्क्स लेने है जितने ज्यादा मार्क्स उतनी बड़ी नौकरी '। हम बच्चों को नौकर बनने के लिए प्रेरित करते हैं, मालिक बनने के लिए नहीं। और हद तो तब हो जाती है जब बच्चे इतने मार्क्स ले भी लेते हैं लेकिन उनको नौकरी नहीं मिलती। दरअसल हमारे पढ़े लिखे 70% युवा उन नौकरियों के काबिल ही नहीं होते। दूसरा कारण भारत के बहुत से प्रतिभा संपन्न युवाओं को यहां पर मौका ही नहीं मिलता अपनी काबिलियत को निखारने और प्रयोग करने का। ऐसे युवा दूसरे देशों की ओर जाने पर मजबूर हो जाते हैं। अब तक 12 नोबेल पुरस्कार विजेता ऐसे रहे हैं जिनका संबंध भारत से रहा है लेकिन केवल रबीन्द्रनाथ टैगोर और सर सीवी रमन ही ऐसे थे जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। बाकी दूसरे देशों की नागरिकता ले चुके थे। इतना ही नहीं कितने भारतीय दूसरे देशों में डॉक्टर, इंजिनियर, साइंटिस्ट और बड़ी बड़ी कंपनियों में महत्वपूर्ण पदों पर काम कर रहे हैं। 
यदि इन सबको अपने देश में काम करने के अवसर उपलब्ध होते तो इनको बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होती और इनके ज्ञान और अनुभव का पूरा लाभ भारत को मिलता। हमारी सरकारें आत्मनिर्भर बनाने की तो बात करते हैं लेकिन अवसर पैदा नहीं करते। साल 2019-20 में भारत का कुल बजट करीब 28 लाख करोड़ रु था, वही चीन 10 महीनों में 29 लाख करोड़ रुपए केवल शिक्षा पर खर्च कर चुका था। जबकि भारत का शिक्षा बजट 94 हजार करोड़ रुपए था। भारत में न तो कभी संसाधनों की कमी थी और न ज्ञान की कमी थी तो केवल सरकार की भूमिका की और वही आज भी है। आज हर किसी को धर्म, जात, राजनीति और नेता की चिंता है लेकिन अपने बच्चों के भविष्य की  चिंता नहीं है। हमारा मीडिया दिन रात बेमतलब के लिए मुद्दों के लिए कई कई दिन, कई कई महीने बहस कर सकता है लेकिन ऐसे मुद्दे मीडिया के लिए दोयम दर्जे के है। हमारी शिक्षा पद्धति में व्यापक बदलाव की जरूरत है तभी हम विश्वगुरु के सपने को साकार कर पाएंगे।

Sunday, July 5, 2020

5 जुलाई गुरु पूर्णिमा

5 जुलाई गुरु पूर्णिमा : 
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
भारतीय संस्कृति में गुरु को विशेष महत्व दिया गया है। गुरु का स्थान भगवान से ऊपर माना गया है। कबीर जी ने अपनी वाणी में कहा है, गुरु और भगवान दोनों उसके सामने है किसके चरण पहले लागू, इस पर कबीर जी कहा है कि वह गुरु ही है जिन्होंने मुझे भगवान के दर्शन करवाए है। अतः पहले गुरु के चरण लगना चाहिए। 
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गुरु की विधि विधान से पूजा की जाती है। गुरु पूर्णिमा, वर्षा ऋतू के आरम्भ में आती है। 
संस्कृत में गुरु शब्द का अर्थ अज्ञान या अंधकार को मिटाने वाला होता है। गुरु साधक के अज्ञान को मिटाता है ताकि वह अपने भीतर ही सृष्टि के स्रोत का अनुभव कर सके। इस दिन साधक गुरु को अपना आभार प्रकट करते है और उनका  आशीर्वाद प्राप्त करते है। योग साधना और ध्यान का अभ्यास करने के लिए गुरु पूर्णिमा को विशेष लाभ देने वाला माना जाता है। 
भारत में अंग्रेजों के आने से पहले गुरु पूर्णिमा को अवकाश किया जाता था और लोग धार्मिक स्थलों पर जाकर अपनी खुशहाली के लिए प्रार्थना करते और अपने गुरु का आभार प्रकट करते थे। मानवता के इतिहास में इसी दिन को मनुष्यों को याद दिलाया गया कि उनका जीवन पहले से तय नहीं है यदि वे प्रयास करने के लिए तैयार है तो अस्तित्व का प्रत्येक दरवाजा उनके लिए खुला हुआ है। 
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
हमारे देश में कुछ समय पहले तक ऐसा ही माना जाता था कि हमारे जीवन में गुरु की विशेष महिमा है। गुरु सर्वोपरि है। 'गु' का अर्थ अंधकार और 'रु' का अर्थ हटाने वाला अर्थात अंधकार को हटाने वाला। हमारे देश में यह पर्व सबसे महत्वपूर्ण होता था। लोग इस पर्व को किसी जाती या पंथ के भेदभाव के बिना मनाते थे। उस समय ज्ञान प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण समझा जाता था। समाज में शिक्षक या गुरु को सर्वोच्च सत्ता का दर्जा दिया जाता था। महान सम्राट चंदरगुप्त ने अपने गुरु विष्णुगुप्त का अनुसरण करके दिखा दिखा दिया था कि गुरु अपने शिष्य को क्या बना सकता है। 
गुरु पूर्णिमा : वह दिन जब प्रथम गुरु का जन्म हुआ
सृष्टि के अस्तित्व या स्रोत का जो ज्ञान लोगों को है या फिर लोग जिस तरह से इसे समझते है, उसे आदियोगी एक नए रूप में ले गए। भगवान शिवशंकर को सबसे पहला गुरु माना गया है और जिस दिन वो सबसे पहले गुरु का जन्म हुआ उस दिन को गुरु पूर्णिमा कहा गया। गुरु पूर्णिमा वो दिन है जिस दिन पहले योगी योगी ने खुद को आदि गुरु अर्थात पहले गुरु के रूप में बदल लिया था। योगिक संस्कृति में शिव को भगवान नहीं माना जाता बल्कि आदि योगी अर्थात पहले गुरु के रूप में देखा जाता है। सृष्टि के स्रोत या अस्तित्व को आदि योगी एक नए आयाम में ले गए और उन्होंने अपने आप को सृष्टि और सृष्टि के स्रोत के बीच एक सेतू के रूप में बना लिया। उन्होंने मानव को बताया की यदि मानव इस मार्ग पर चलेगा, तो जिसे वह सृष्टि कर्ता कहता है, तो उसके और सृष्टि कर्ता के बीच कोई भेद नहीं रहेगा। तो इस प्रकार से यह दर्शनशास्त्र नहीं बल्कि एक विज्ञानं है। इस वैज्ञानिक पद्धति के माध्यम से मानव प्रकृति की उन सीमाओं से भी परे जा सकता है जिनमें वह सीमित है। 
लेकिन आधुनिकता के इस युग में हमने इस महान परम्परा को और इसके महत्व को खो दिया है। आज न तो एक शिक्षक का मान सम्मान रहा और न ही गुरु शिष्य की परम्परा। गुरु पूर्णिमा केवल कुछ आश्रमों तक सिमट कर रह गई है। सरकार के लिए ये विषय अव्यवहारिक होते जा रहे है। लोगों के लिए वैभव, धन दौलत के ज्यादा मायने हो गए है। शिक्षा का स्वरुप बदल गया है। लोगों के पास आध्यात्मिक शक्ति जगाने का समय नहीं है। इस ज्ञान को देने वाले भी निरंतर कम होते जा रहे है। शिक्षा में इस ज्ञान को कोई स्थान नहीं मिल पा रहा है। आज मानव केवल एक मशीन की भांति बनता जा रहा है। 
5 July Guru Poornima:
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
Guru is given special importance in Indian culture. The Guru's position is considered to be above that of God. Kabir Ji has said in his speech, both Guru and God are in front of him, whose steps are implemented first, on this Kabir Ji has said that it is the Guru who has made me see God. Therefore, the first phase of Guru should be started.
The full moon of Ashadha month is celebrated as Guru Purnima. On this day, the Guru is worshiped by law.
The word Guru in Sanskrit means ignorance or eradication of darkness. The Guru eradicates the ignorance of the seeker so that he can experience the source of creation within himself. On this day, seekers show their gratitude to the Guru and receive his blessings. Guru Purnima is considered to be of special benefit for practicing yoga practice and meditation.
Before the British arrived in India, Guru Purnima was a holiday and people used to go to religious places to pray for their prosperity and thank their guru. On this day in the history of humanity, humans were reminded that their life is not predetermined, if they are ready to try, then every door of existence is open to them.
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
Until some time ago in our country it was believed that Guru has special glory in our life. Guru is paramount. 'Gu' means darkness and 'Ru' means one who removes darkness. This festival used to be most important in our country. People celebrated this festival without any caste or creed discrimination. At that time acquiring knowledge was considered most important. In society, the teacher or guru was given the status of supreme power. The great emperor Chandergupta followed his guru Vishnugupta and showed what a guru could make his disciple.
Guru Poornima: the day when the first Guru was born
Adiyogi took the knowledge of the existence or source of creation in a new form, or the way people understand it. Lord Shivshankar is considered to be the first Guru and the day he was born the first Guru was called Guru Purnima. Guru Purnima is the day on which Yogi first transformed himself into Adi Guru i.e. the first Guru. In Yogic culture, Shiva is not considered a god but is seen as an Adi Yogi i.e. the first Guru. The Adi Yogis took the source or existence of creation into a new dimension and they formed themselves as a bridge between the creation and the source of creation. He told the man that if man walks this path, then what he calls the creator, then there will be no distinction between him and the creator. So in this way it is not a philosophy but a science. Through this scientific method, human nature can go beyond the limits of which it is limited.
But in this era of modernity we have lost this great tradition and its importance. Today neither the honor of a teacher nor the tradition of Guru Shishya. Guru Purnima has been confined to only a few ashrams. These subjects are becoming impractical for the government. Splendor and wealth have become more important for the people. The nature of education has changed. People do not have time to awaken spiritual power. Those who give this knowledge are also becoming less and less. This knowledge is not getting any place in education. Today, humans are becoming just like a machine.




Friday, July 3, 2020

चीन का चारो ओर फैलता जाल

चीन का चारो ओर फैलता जाल
 :
हमेशा से ही चीन की नजर अपने पड़ोसियों की जमीन पर रही है।  चीन की सीमा भले ही 14 देशों के साथ लगती हो, लेकिन वह 23 देशों की जमीन या समुद्री सीमाओं पर नजर रखता है। चीन अब तक दूसरे देशों की 41 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर अपना कब्ज़ा कर चुका है। यानि चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति से अपने साइज़ को लगभग दुगना कर लिया है। पिछले 7 दशकों में चीन ने अपने मौजूदा हिस्से का 40% से ज्यादा हिस्सा दूसरे देशों से छिना है। चीन में 1949 में कम्युनिष्ट शासन की स्थापना हुई और तभी से चीन ने जमीन हड़पने की नीति शुरू कर दी। 
ईस्ट तुर्किस्तान
1949 तक चीन ईस्ट तुर्किस्तान की 16 लाख वर्ग कि. मी भूमि पर कब्ज़ा कर चुका था। यह इलाका उईगर मुस्लिमो का है तब से चीन इन लोगों पर जुल्म करता आ रहा है। 
मंगोलिया 
चीन  ने 1945 में मंगोलिया पर हमला कर दिया और 12 लाख वर्ग कि मी  का मंगोलिया के भू भाग पर कब्ज़ा कर लिया। यहां पर दुनिया के 25% कोयला भंडार है। 
तिब्बत 
1950 में चीन ने तिब्बत के 12 लाख वर्ग कि मी पर कब्ज़ा कर लिया।  यहां पर बहुत भारी मात्रा में खनिज सम्पदा है। यहां पर 80% बौद्ध आबादी है। यहां के धर्म गुरु दलाई लामा ने भारत की सरन ली हुई है। 
ताईवान 
1949 में चीन के राष्ट्रवादियों ने कम्युनिष्टों से डर कर ताईवान की शरण ली, चीन ताईवान को भी अपना हिस्सा मानता है। लेकिन ताईवान को अमेरिका का समर्थन हासिल है वह चीन का डटकर सामना कर रहा है। 35 हजार कि मी वाले समुंदर से घिरे ताईवान पर लम्बे समय से चीन की नजर है। 
भारत
 
ऐसे ही चीन ने 1962 में युद्ध करके भारत के 38 हजार वर्ग कि मी पर कब्ज़ा कर लिया। 5180 वर्ग कि. मी. का POK का इलाका पाकिस्तान ने चीन को दे दिया। इसके बाद भी चीन लगातार भारत के लद्दाक, अरुणाचल प्रदेश को भी अपना बताता रहा है। हालाँकि भारत ने चीन के साथ लगातार मैत्री करने की कोशिश की है लेकिन चीन की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। 
दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर
चीन ने इस क्षेत्र के 7 देशों सटे 35 लाख वर्ग कि. मी. समुद्र के 90% क्षेत्र पर अपना दावा ठोक रखा है। यहाँ से ३ लाख करोड़ का सालाना व्यापार, 77 अरब डॉलर का तेल और 266 लाख करोड़ क्यूबिक फ़ीट गैस भंडार है जिन पर चीन का कब्ज़ा है। ऐसे ही चीन पूर्वी चीन सागर के 81 हजार वर्ग कि. मी. पर भी नजर रखे हुए है। 
नेपाल 
चीन ने नेपाल के कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया हे और नेपाल की जनता अपनी सरकार से नाराज है। इस वजह से चीन ने नेपाल के लोगों का ध्यान भटकाने के लिए भारत से सीमा विवाद छेड़ा हुआ है। चीन ने उधर नेपाल में बड़े पैमाने पर निवेश किया हुआ है जिस बहाने वह चीन को कब्जाने में लगा हुआ है और भारत के लिए भी अवरोध उत्त्पन कर रहा है। 
हांगकांग 
हांगकांग में चीन लगातार मानवाधिकारों का उलंघन करता आ रहा है। तीन दिन पहले चीन ने हांगकांग के लिए राष्ट्रिय सुरक्षा कानून पारित कर दिया है जिससे वहां के लोगों की आवाज को दबाया जा सके। 
चीन की विस्तारवाद नीति के कारण इस वक्त एशिया महाद्वीप में जंग के हालात  बने हुए है। एक  तो कोरोना के कारण चीन इस वक्त सभी मुल्कों की नजर में आया है, पूरी दुनियां इस संकट का कारण चीन को मान रही है जिससे अभी तक पूरी दुनियां में 5 लाख से ज्यादा लोग मर चुके है और अभी तक इस महामारी का कोई उपाय नहीं ढूंढ पाए है। पूरी दुनिया में चीन के प्रति गहरा रोष है। 


Saturday, June 20, 2020

21June 2020 : अदभुत संयोग

21 June 2020 को एक विशेष संयोग हो रहा है। यह दिन कई मायनों में विशेष होगा। वैसे तो बहुत से लोगों के लिए हर दिन विशेष होता है । लेकिन 21 June 2020 को कुछ खगोलीय और ऐतिहासिक घटनाएं घट रही है। आइये जानते हैं इस दिन के बारे में ।

खगोलीय महत्व :
21 जून को साल 2020 का पहला सूर्य ग्रहण लगेगा। इस सूर्य ग्रहण की खास बात ये है कि इस सूर्य ग्रहण में रिंग ऑफ फायर के रूप में एक अदभुत नजारा देखने को मिलेगा। ये सूर्य ग्रहण 9:15 सुबह शुरू होगा और दोपहर 3 बजकर 4 मिनट तक समाप्त होगा। रिंग ऑफ फायर का मतलब आग का छलला। यानी चांद सूरज को पूरी तरह से कवर नहीं करेगा बल्कि सूरज पीछे से दिखाई देता रहेगा।
साल का सबसे बड़ा दिन :

21 जून को साल का सबसे बड़ा दिन होता है और रात सबसे छोटी  होती है। 21 जून के बाद दिन छोटे होते जाते हैं और रात बड़ी होने लगती है। इस दिन सूर्य की किरणें 13 घंटे 58 मिनट और 12 सैकंड तक धरती पर रहती है। इस दिन कुछ देर के लिए हमारी परछाईं भी लुप्त हो जाती है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस :

भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सयुंक्त राष्ट्र को सितंबर 2014 में दिए सुझाव के बाद 21 जून 2015 को पहली बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। ओशो का मानना था कि योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है। योग एक विज्ञान है और स्वस्थ जीवन जीने की कला है।
फादर्स डे :
पिताओं के सम्मान में मनाया जाने वाला दिन। अनेक देशों में इसे जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है तथा बाकी देशों में अन्य दिन मनाया जाता है।

Wednesday, June 17, 2020

अपनों से बढ़ती दूरियाँ ! हर छटा भारतीय डिप्रेशन का शिकार

अपनों से बढ़ती दूरियाँ ! हर छटा भारतीय डिप्रेशन का शिकार 
दोस्तों की महफ़िल सजे जमाना हो गया ,  लगता है जैसे खुल के जिए एक जमाना हो गया। 
काश कहीं मिल जाए वो काफिला दोस्तों का, जिंदगी जिये एक जमाना हो गया। 
अधिक भौतिकतावाद 
आज की जिंदगी क्या सच में ऐसी हो गई है ? यदि देखा जाए तो हर वक्त ऐसा नहीं था ? पिछले दो दशकों में भारत की पृष्ठभूमि में काफी परिवर्तन आया है। हम अपने प्राचीन परिवेश को छोड़कर भौतिकवाद की ओर आकर्षित हुए है। सफलता के मायने बदल चुके है। रिश्तों की जगह पैसों ने ले ली है। कम से कम समय में अधिक से अधिक आर्थिक आजादी पाने के लिए समाज का हर वर्ग दिन रात की सीमाओं को लाँगते हुए काम पर लगा हुआ है। वैसे तो हमारे देश में बेरोजगारी भी अपने चरम पर है लेकिन जिसको काम करना है उसके लिए दिन रात काम है। छोटे दुकानदार से लेकर बड़े बड़े से व्यापारी के लिए हर समय एक गला काट पर्तिस्पर्धा हो रही है। इस खेल में जीत हासिल करने के लिए हम खुद के लिए और परिवार के लिए समय नहीं निकाल पा रहे है और जब हमारे पास खुद के लिए और परिवार के लिए समय ही नहीं है तो पड़ोसियों के लिए कहां से समय होगा। 
हम अपनी महत्वक्षाओं के बीच निरंतर तनाव पूर्ण जीवन जी रहे है। और इस तनाव के कारण हम अकेले पड़ते जा रहे है, हम एक दूसरे से बात करने से डरने लगते है, हम दोस्त दुश्मन में अंतर नहीं कर पाते है। कई बार तो हम बात करने का साहस जुटाते भी है तो तब और भी तनाव बढ़ जाता है जब अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता है । और शायद हम कई बार अपने दोस्तों या करीबियों को खोने के डर से भी अपनी वास्तविक स्थिति पर चर्चा नहीं कर पाते है। लेकिन इसमें कसूर केवल किसी एक पक्ष का नहीं होता, इसमें दोनों ही पक्ष बराबर की भूमिका निभाते है। क्योंकि आखिर हम सब है तो इसी समाज का अंग और समाज में हर तरह के रंग शामिल है। पद एवंम प्रतिष्ठा 
 आज के समय में सामाजिक सहभागिता को समय की बर्बादी के तौर पर देखा जाता है। हम ज्यों ज्यों सफलता की अग्रसर होते जाते है त्यों त्यों समाज से दूर होते जाते है।  क्योंकि हम कभी भी असफल लोगों के साथ खड़ा होना या उनके साथ समय बिताना पसंद नहीं करते। लेकिन हर व्यक्ति के जीवन में वही क्षण लौटकर आते है फिर से हमे उसी समाज की जरूरत महसूस होने लगती है, जब बुढ़ापा आने लगता है, औलाद अपने काम धंधे में व्यस्त हो जाती है और अपने पास कोई काम नहीं रह जाता है। तब हमे अकेलेपन का एहसास होता है। यदि हम अपनों का ख्याल रखे, उनके सुख दुःख में शामिल हो तो यही प्यार हमारे लिए सुरक्षा का काम भी करता है। पद और प्रतिष्ठा सफल व्यक्ति की पहचान से जुड़े है लेकिन हमें किसी भी सूरत में मानवीय और सामाजिक गुणों को नहीं छोड़ना चाहिए। 
जानकारी का आभाव 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़ों के अनुसार भारत की 36% जनसंख्या अवसादग्रस्त है। भारत और चीन डिप्रेशन के मामलों में सबसे  प्रभावित देशों में शमिल है।  यहाँ पर लोगों की एक मुख्य समस्या 'चिंता' होना है।चिंता के कारण आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। दूसरे यहां पर इस समस्या को बीमारी न मानना, हम चिंता व अवसाद को कोई बीमारी ही नहीं मानते और यही वजह है कि जब बात हाथ से निकल चुकी होती है तब जाकर डाक्टरी इलाज की सोची जाती है। भारत में लगभग 12% युवा डिप्रेशन का शिकार है। महिलाओं की संख्या पुरषों से भी ज्यादा है। अमेरिकी रिसर्च के अनुसार अकेलेपन से शरीर को उतना ही नुकसान होता है जितना हर रोज 15 सिगरेट पीने से होता है। विशेषज्ञों की राय में सबसे आम बीमारी ह्रदय रोग और डायबटीज नहीं बल्कि अकेलापन है। 
सोशल मीडिया वजह और हल दोनों 
वैसे तो आजकल सोशल मीडिया को युवाओं में अकलेपन की सबसे बड़ी वजह मन जा रहा है। फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट पर सैकड़ों दोस्त होते है, लेकिन असल में वो दोस्त नहीं है जो उनके साथ अपनेपन का अहसास करा सके. ऐसे दोस्त जो किसी को गलत करने से रोक सके। ऐसे दोस्त जो परिवार के सदस्यों की तरह हों, जिनका साथ होने से माँ बाप फिक्रमंद न हो। सोशल मीडिया पर इसका हल भी मिल जाता है इसके जरिये हम दुनिया भर के लोगों के अनुभव का लाभ उठा सकतें है। माना कि काम जरूरी है लेकिन यदि स्वास्थ्य उससे भी ज्यादा जरूरी है, यदि स्वस्थ रहेगें तो सभी सुख भोग सकते हैं, वरना काम करने के लायक भी नहीं रहेंगे ।

Sunday, June 14, 2020

अमेरिका में आयुर्वेद की धूम !

आज एक न्यूज चैनल बता रहा है कि किस प्रकार अमेरिका में भारतीय आयुर्वेद का डंका बज रहा है। किस प्रकार से अमेरिका में भारतीय जड़ी बूटियों पर रिसर्च हो रही है और वहां पर इन रिसर्च पर कितना पैसा खर्च किया जा रहा है। इन भारतीय जड़ी बूटियों से किस प्रकार असाध्य रोगों का इलाज किया जाए, इस प्रकार की खोज की जा रही है। इस खबर में ये भी बताया गया कि अमेरिकन भी अब हल्दी वाला दूध पीने लगे है। यदि आपने अभी तक ये सुधीर चौधरी की ये खबर नहीं देखी है तो मै एक लिंक दे रहा हूं जहां से आप फेसबुक पेज से ये खबर देख सकते हैं और अपने आप पर, अपने देश पर, और इन सबसे ज्यादा अपने उस आयुर्वेदिक ज्ञान पर गर्व कर सकते हैं जो विश्व में उस वक्त किसी के पास नहीं था। 
m.facebook.com/story.php?story_fbid=1299068160274164&id=494957864018535
भारत का हजारों वर्षों से आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में अटूट विश्वास रहा है। आज के आधुनिक ज्ञान की बहुत सी खोज तो हमारे उसी वर्षों पुरानी पद्धति से चुराई हुई है जिसको आज भारत में ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमने अपने इस अमूल्य ज्ञान को पुनर्जीवित करने का कभी ठोस प्रयास नहीं किया। हमने अपने ज्ञान विज्ञान को छोड़कर पश्चिमी देशों की शिक्षा को अपने भविष्य का आधार बनाया। हालांकि कुछ लोगों ने अपनी इस अमूल्य धरोहर को बचाने का असफल प्रयास किया, असफल इसलिए क्योंकि इस काम के लिए हमारे प्रशासन और सरकार कभी सकिर्य नहीं हुए ना ही इसको कोई महत्व दिया। आयुर्वेद के साथ हमेशा दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया। और कमोबेश आज भी यही स्थिति है। आज भी हम विदेशों में आयुर्वेद पर हो रहे रिसर्च की बात तो करते है लेकिन भारत में इस पर हो रहे भेदभाव की बात नहीं करते। हमारे मीडिया हाउस कभी इस बात को नहीं बताते की किस प्रकार हमारी जड़ी बूटियों को विदेशियों द्वारा पेटेंट करवाया जा रहा है। आज कुछ लोग आयुर्वेद के प्रचार में लगे हुए हैं लेकिन सरकार के पूर्ण सहयोग के बिना उचित परिणाम नहीं मिलेंगे। 
आज हम स्वदेशी, आत्मनिर्भर, मेक इन इंडिया की भले ही बात करें लेकिन धरातल पर कुछ भी होता नजर नहीं आ रहा है। पूरी दुनियां महामारी से जूझ रही है और इस महामारी का अभी तक कोई इलाज न मिलना बड़ा ही चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऐसे समय में यदि सरकार चाहती तो आयुर्वेद पर भरोसा कर सकती थी और इस महामारी की प्रकृति को देखते हुए आयुर्वेद इस बीमारी को नियंत्रण में कर सकता था। लेकिन पता नहीं सरकार के सामने ऐसी क्या मजबूरियां हैं जो ऐसे समय पर भी आयुर्वेदिक दवाओं के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दे रही है। हमारी सरकार यदि सचमुच आत्मनिर्भर भारत बनाना चाहती है तो इसके लिए बहुत बड़े स्तर पर परिवर्तन करना होगा। हमे शुरू से अपनी शिक्षा का ढांचा ऐसा करना होगा कि हम ज्यादा से ज्यादा अपने ही बनाए उत्पादों का प्रयोग करे उन्हीं उत्पादों पर खोज करे और उन्हीं पर अपनी निर्भरता को कायम रखे। तभी जाकर हम आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा कर पाएंगे।

Wednesday, June 3, 2020

कैसे बनेगें लोकल के लिए वोकल ?

कैसे बनेगें लोकल के लिए वोकल ?
क्या सरकार वास्तव मे भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देना चाहती है ? क्या वास्तव में सरकार चाहती है कि हम आत्मनिर्भर बनें ? कैसे भारत विश्व गुरु बनेगा ? क्या सरकार ने ऐसी कोई नीति बनाई है जिससे हम भारतीय उत्पादों को विश्व के कोने कोने में पहुंचा सके ? आज मै आपसे इन्हीं कुछ सवालों पर बात कर रहा हूँ। 
 कोरोना से पूरा विश्व लड़ाई लड़ रहा है और सभी देश एक दवा की खोज में लगे हुए है ताकि इस महामारी से निजात मिल सके। लेकिन अभी तक किसी भी देश से ऐसी कोई दवा नहीं बन पाई है जो इस बीमारी में कारगर हो। अभी तक कोरोना के मरीज़ को इलाज के नाम पर केवल प्रयोग किया जा रहा है। अलग अलग बीमारियों की दवा को कोरोना मरीज़ों पर आजमा के देखा जा रहा है। यहां तक की उन दवाओं का भी इस्तेमाल किया जा रहा है जिनकी अनुमति WHO नहीं देता है। यानि जिन दवाओं का हमें फायदे की बजाय नुकसान ज्यादा होता है वो दवाये भी कोरोना मरीज़ों को दी जा रही है। हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन, AIDS, TB, मलेरिया आदि दवाओं को आजमाया जा रहा है। हालाँकि कुछ दवाएं बहुत से देशों में प्रतिबंधित है फिर भी इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। 
                   किसी भी बीमारी का इलाज कई पद्धतियों से संभव हो सकता है। जैसे एलोपैथी, ज्यादातर इसी पद्धति से किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज करने की कोशिश की जाती है। इस पद्धति से कई असाध्य रोगों पर विजय संभव हो पाई है। हालाँकि इलाज की ये विधि कई नए रोगों को भी जन्म दे सकती है। इसके अलावा यूनानी, आयुर्वेदिक, होमिओपेथी और इसके अलावा एक पद्धति और है जो हर देश में पाई जाती है ये चिकित्सा पद्धति हर देश में वहां के वातावरण, संस्कृति और खान पान पर आधारित होती है। और बहुत से रोगों का इलाज इन पद्धतियों से किया जाता है या यूँ समझ लीजिये जिस रोग का इलाज हम किसी एक पद्धति से नहीं कर पाते है तो हम इलाज की दूसरी पद्धतियों का सहारा लेते है। अब यदि भारत की बात की जाए तो यहां पर भी कोरोना के इलाज के लिए एलोपैथी विधि ही इस्तेमाल की जा रही है। 
                 
हालाँकि भारत की संस्कृति और खान पान के हिसाब से आयुर्वेद बहुत ही विश्वसनीय और कारगर पद्धति वर्षों से आजमाई जा रही है। आयुर्वेद तो भारत की पहचान है, समय के अलग अलग कालखंडों में हमारे आयुर्वेद आचार्यों में धन्वंतरि, च्यवन, चरक आदि ने हर प्रकार के रोग का निदान आयुर्वेद में किया है। हमारी आयुर्वेद पद्धति तो आज की मेडिकल साइंस से कहीं आगे थी। लेकिन आज उसी संस्कृति के लोग अपनी अनमोल चिकित्सा पद्धति को छोड़कर केमिकल युक्त चिकित्सा पद्धति को अपनाते जा रहे है। आजादी के बाद भी हमने अपनी आयुर्वेदिक प्रणाली की और कभी ध्यान नहीं दिया और आज भी हम वहीं खड़े हैं जैसे आजादी के समय पर थे। मतलब हमने अपनी पारम्परिक चिकित्सा पद्धति की न तो परवाह की और न ही इसे ऊपर उठाने का प्रयत्न किया। जो थोड़ा बहुत काम इस ओर हुआ है वो व्यक्तिगत तौर पर हुआ है उसमें सरकार की ना के बराबर भूमिका है। 
                हालाँकि सरकार ने आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय भी बनाया हुआ है लेकिन आज तक उस विभाग की कोई उपलब्धि पता नहीं चल सकी है। लेकिन आज भी यदि हम आयुर्वेद को पुनः वही मान सम्मान दिलाने का प्रयत्न करें तो हमारे हाथ बहुत ही अच्छा अवसर आया हुआ है वैसे भी कहावत है जब जागो तभी सवेरा। कोरोना काल में सरकार के पास एक बहुत बड़ा अवसर आया है जिससे एक पंथ और कई काज हो सकते है । जब किसी के पास कोरोना की कोई दवा नहीं थी और केवल दूसरी बीमारियों की दवा को ही आजमाना था तो सरकार ने आयुर्वेद को क्यों नहीं आजमाया। जबकि आयुर्वेद में बहुत सी जड़ी बूटियां इस जैसी बीमारी को सफलता पूर्वक ख़त्म करने में सक्षम है। इसका प्रमाण गुजरात राज्य में सामने भी आ चुका है, यदि आप लोगों को इसकी जानकारी नहीं है तो 30 मई का गुजरात का दैनिक भास्कर अख़बार आप देख सकते है। आयुर्वेद के इलाज से 586 Corona symptomatic patients ठीक हो चुके हैं, पूरी न्यूज आप इस लिंक पर देख सकत  हैं। इसका एक लिंक मै यही पर दे रहा हूँ :
                  इसी रिपोर्ट से आप देख सकते हो की आयुर्वेद इस बीमारी में कितना कारगर साबित हो सकता है। इतना ही नहीं यदि सरकार शुरू से इस ओर ध्यान देती तो आज तक करोड़ो का निर्यात हमारी आयुर्वेदिक कंपनियां कर चुकी होती। हमारे प्रधानमंत्री कह रहे है आत्मनिर्भर बनो लेकिन कैसे बने जब सरकार ही आगे जाने का रास्ता बंद करके बैठी है। कुछ लोगों ने प्रयास भी किया, वो स्वास्थ्य मंत्री से भी मिले, आयुर्वेदिक इलाज शुरू करवाने को लेकर, यहां तक की PM कार्यालय को भी कई कई पत्र लिखे गए, लेकिन आयुर्वेदिक इलाज के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई। इसका मतलब या तो सरकार को आयुर्वेद पर भरोसा नहीं या फिर सरकार किसी दबाव में है। यदि सरकार किसी दबाव में है तो कैसे लोकल को ब्रांड बनाया जा सकता है? जबकि आयुर्वेद को भारत का सबसे जबरदस्त ब्रांड बनाया जा सकता है। क्या केवल टीवी पर लोकल के लिए वोकल बोलकर काम चल जाएगा ? क्या टीवी पर बोलकर ही हम आत्मनिर्भर हो जाएंगे? जब तक सरकार और उच्च पदों पर बैठे अधिकारी इस और ठोस प्रयास नहीं करेंगें तब तक न तो हम लोकल ब्रांड बना पायेगें और न ही हम आत्मनिर्भर बन सकेंगें। हमारे प्रधानमंत्री की लोकप्रियता विश्व में सबसे ज्यादा है उन्हें ही आयुर्वेद का ब्रांड एंबसेडर बनना चाहिए। 
                      अंत में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि केवल टिक टॉक को डिलीट करने से काम नहीं चलने वाला क्योंकि हमारे मोबाइल में 90% ऐप या तो चाईनीज है या उनमें सबसे ज्यादा चाइना का पैसा लगा हुआ है। तो यदि चाइना को कोई आर्थिक नुकसान पहुंचाना चाहते हैं तो हमें ये सभी ऐप डिलीट करने होंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं सकेगा! इससे बेहतर है हम अपने उत्पाद को लोकप्रिय बनाएं। ताकि विश्व में ज्यादा से ज्यादा हमारे उत्पाद बिक सके। एक वीडियो का लिंक दे रहा हूं यदि आपके पास टाइम हो तो इस वीडियो को जरूर देखना।
https://youtu.be/CqEUaXwUjZE

How to create a vocal for local?
Does the government really want to promote Indian products? Does the government really want us to be self-sufficient? How will India become world guru? Has the government made any such policy so that we can deliver Indian products to every corner of the world? Today I am talking to you on these few questions.
 The whole world is fighting a battle with Corona and all the countries are engaged in searching for a drug to get rid of this epidemic. But so far no such medicine has been made from any country which is effective in this disease. So far, the corona patient is being used only in the name of treatment. The medicine of different diseases is being tried on the corona patients. Even those drugs that WHO does not allow are being used. That is, the medicines, which harm us more than the benefits, are being given to the corona patients. Drugs like hydroxy chloroquine, AIDS, TB, malaria etc. are being tried. Although some medicines are banned in many countries, they are still being used.
                   Treatment of any disease can be possible in many ways. Like allopathy, mostly this method tries to cure any type of disease. This method has led to victory over many incurable diseases. However, this method of treatment can also give rise to many new diseases. Apart from this, Unani, Ayurvedic, Homeopathy and moreover there is another method which is found in every country, these systems of medicine are based on the environment, culture and food in every country. And many diseases are treated with these methods, or understand that if we are not able to cure any one method, then we resort to other methods of treatment. Now if we talk about India, here too the allopathy method is being used to treat corona.
                  However, Ayurveda is a very reliable and effective method to be tried for years according to the culture and food of India. Ayurveda is the identity of India, in different periods of time, in our Ayurveda masters, Dhanvantari, Chyavan, Charaka etc. have diagnosed all types of diseases in Ayurveda. Our Ayurveda system was far ahead of today's medical science. But today people of the same culture are abandoning their precious medical system and adopting chemical-rich medical system. Even after independence, we never paid any attention to our Ayurvedic system and even today we stand there as if we were at the time of independence. Meaning, we neither cared for our traditional medical system nor tried to elevate it. The little work that has been done on this side has been done personally, in which the government has an equal role.
                Although the government has also created the Ministry of AYUSH to promote Ayurveda, but till date no achievements of that department have been known. But even today, if we try to bring the same honor to Ayurveda again, then a very good opportunity has come in our hands. Anyway, when wake up then only morning. In the Corona period, a huge opportunity has come to the government which may lead to a cult and many hides. When no one had any medicine for corona and only wanted to try medicine for other diseases, then why did the government not try Ayurveda. While many herbs in Ayurveda are able to successfully eliminate such disease. Evidence of this has also come to the fore in the state of Gujarat, if you do not know about it, then you can see Dainik Bhaskar newspaper of Gujarat on 30th May. 586 Corona symptomatic patients have been cured with the treatment of Ayurveda, you can see the whole news on this link. Here is a link to this:


From this report you can see how effective Ayurveda can be in this disease. Not only this, if the government had paid attention to this from the beginning, by then our Ayurvedic companies would have exported crores. Our Prime Minister is saying to be self-reliant but how to become one when the government is sitting on the path to go ahead. Some people also tried, they also met the Health Minister, many letters were written to start the Ayurvedic treatment, even to the PM office, but no permission was given for the Ayurvedic treatment. This means either the government does not trust Ayurveda or the government is under some pressure. If the government is under some pressure then how can the local be branded? While Ayurveda can be made India's most powerful brand. Will speaking work for local only on TV be done? Will we become self-sufficient only by speaking on TV? As long as the government and the officials in high positions do not make this more concerted effort, neither will we be able to create a local brand nor will we become self-sufficient. Our prime minister has the highest popularity in the world, he should become the brand ambassador of Ayurveda.
In the end, I would just like to say that just deleting Tick Talk will not work because 90% of our mobile apps are either Chinese or they have the maximum amount of Chinese money. So if we want to cause any economic loss to China, then we have to delete all these apps. But this will not happen We better make our product popular. So that more and more of our products can be sold in the world. I am giving a link to a video, if you have time, then definitely watch this video.

https://youtu.be/CqEUaXwUjZE

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